गांधी जयंती पर विशेष::
गांधी-दर्शन:
गांधीजी का कहना था कि उनका जीवन ही दर्शन का संदेश है। एक बार वे इलाहाबाद में खाना खाकर उठे, तो नेहरूजी उनका हाथ धुला रहे थे। इसी तरह एकजन उनसे बात करने लगे। वे बातों में इतने खो गए कि उन्हें याद ही नहीं रहा कि उनका कोई हाथ धुला रहा है। जब बात खत्म हुई, तो उन्होंने नेहरू से कहा, ' जवाहर तुम पानी बरबाद किया, लेकिन मेरा हाथ नहीं धुला। '
इसपर नेहरू ने जवाब दिया, ' गांधी जी, आप कतई परेशान न हों। यह वर्धा नहीं, इलाहाबाद है। यहां गंगा व जमुना दोनों बहती है। '
' जरूर जवाहरलाल, पर ये गंगा और यमुना तुम्हारे और मेरे लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए हैं। पशु-पक्षी, पेड़-पौधों के लिए भी हैं। ' ऐसा गांधीजी की सोच थी।
गांधीजी की विचारधारा को गांधी-दर्शन कहा जाता है, जो भारतीय दर्शन के तत्वों से प्रेरित व Inf है। वे ईश्वर को सृष्टि का मूल मानते हैं। गांधीजी का कथन है, ' मुझे जगत के मूल अनुमोदने राम के दर्शन होते हैं। '
उन्होंने प्रभु राम के आदर्शों के आधार पर रामचर की परिकल्पना की थी। उनके मुख में सदा रामनाम रहा और हाथ में गीता। यही कारण है कि जब उनका देहांत हो रहा था, तब भी उन्होंने 'हे राम' कहा था।
वे भगवान राम व श्रीकृष्ण के अनुयायी थे। उनका कहना था कि येका जन्म ही असत्य पर सत्य की जीत के लिए हुआ था। उनका 'सत्य के प्रयोग' में वही महामानवों से अभिप्रित किया जा रहा है। गांधीजी कर्मप्रवृति को सत्य और दोषप्रवृति को असत्य की संज्ञा देते हैं।
उनका कहना है कि मनुष्य में पशुत्व और देवत्व समान रूप में है। जो मनुष्य बलिदान, प्रेम, उदारता और निःस्वार्थता को अपनाता है, वह पशुता पर विजय पा लेता है। उनका मानना है कि जो असत्य है, अनैतिक है, वह हिंसा है। वह अहिंसा को अन्याय व अत्याचार के खिलाफ बड़ी ताकत मानते हैं।
उनका विचार था कि हिंसा का निवारण हिंसा से नहीं, अपितु अहिंसा से किया जा सकता है। उनके द्वारा प्रायोजित असहयोग व सत्याग्रह आंदोलन में उसी सद्विचारों का प्रतिफल व प्रतिरूप था। उनके विचार आदर्शों से प्रभावित व संचालित थे। यही कारण है कि श्रीराम उनके आराध्य और श्रीकृष्ण अभिषेक थे।
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