व्यंग्य-कथा::
बाढ़ का प्रदूषणयनाः:
आलाकमान को जब यह खबर लगी कि बाढ़ बेचारे किसानों की फसल चैपट कर रही है और मरे हुए किसानों को फिर से मार रही है, तो उन्होंने बाढ़ का प्रभावयना करने के लिए अपने आप को काबिल मंत्री को भेजा। पेश है बाढ़ के प्रदूषणयने का लाइव टेलीकास्ट।
' वाह! क्या फंतास्टिक सीन है? सब ओर पानी-ही-पानी दिख रहा है! ’’ मंत्री का हैलीक जब बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के ऊपर से उड़ा, तब वे अपना क्षय रोक नहीं सके।
उसे निककमान से निर्देश मिला था कि सुबह बाढ़-अनंत क्षेत्र का दौरा कर वस्तुस्थिति का रिपोर्ट करना है। उन्होंने मारे खुशी के रातभर सो नहीं पाए थे, इसलिए भाव विभोर हो गए।
उसे याद आया। पिछले वर्षों में भी उसे बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के दौरे का सुअवसर मिला था। वे तब भी बहुत ही उत्साहित थे।
मंत्री की उत्तेजना दीगर जन समस्याओं में हो-न-हो; किंतु सैलाब का जायजा लेने में जरूर रहा है। इसी तरह उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं रहता कि खेती-किसानी की कितनी बिगड़ती हुई है। उन्हें तो उन किसानों से मतलब है, जिनके वोटों की खेती वे बरसों से किया करते थे।
तभी तो वे रात को खुमारी में फरमा रहे थे, ' भाड़ में जाओ, खेती और व्हानी! उनमें से देखना है कि उन किसानों को, जो उनकी पार्टी के वोटर हैं। उनका तो एक ही मकसद है राजकाज का मजा लेना, सैलाब का लुत्फ उठाना और सात पीढ़ी के लिए संग्रह करना। कारण कि अगले मर्तबा मंत्री बने रहे, न रहें; इसकी कोई संभावना नहीं, लेकिन मौजमस्ती की स्मृतियां बनी रहेंगी, इसका जोर है। ' उन्होंने शुरू किया
-यह भी बड़बड़ा रहे थे कि क्या पता अगले साल बाढ़ आए, न आए? उनकी सरकार चली गई, न चले गए? इस बार दोनों पक्षों ने, तो आनंद दोगुना कर लेना चाहिए?
वे मारे खुशी के यह भी कर रहे थे, ' कोल्ड एंड चील्ड वातावरण में जब चैपर जलजले के ऊपर से हवा से बातें करता है, तब स्वर्गानुभूति होती है। भाग्य मिला, तो आजमा कर देख लेना! फिर न कहना कि नहीं बताया! '
' जी, जी, सर! सही कहा सर। ' चैपर में सवार विभागीय सचिव उनकी मनोदशा को ताड़कर हामी भरा, तो पिछलग्गू संभालभैया भी तपाक से बोला, ' तो तो मजा है, बरसात का। बरसात हुई कि बाढ़ आ गई और तुम्हारा खासम-खास होने के नाते मेरा दौरा भी पक्का हुआ। रूलिंग पार्टी का नेता होने का यही फायदा है सर। '
फिर मुंह बनाकर बोला, ' ये ससुरी बाढ़ गरमी में क्यों नहीं आई? गरमी में आता है, तो शीतल-मंद पवन में सैलाब का मजा चैगुना हो जाता है! '
एक मजेदार सीन में मंत्रीजी फिर उत्साहित हो गए और हाथ दिखाने देने लगे, ' देखो-देखो, एक आदमी जलप्रलय में भी हाथ हिला-हिलाकर ब्लूटूथ को टा-टा कर रहा है। ' (जबकि वहाँ एक अभाग बाढ़ में डूब गया। रहा था। डूबते हुए हाथ हिला रहा था। रिसो-रिसओ चिल्ला रहा था, जो मंत्रीजी को सुनाई नहीं दे रहा था।)
दूसरे अदभुत सीन में मंत्रीजी फिर एक्स में बोल रहे थे, ' वहाँ देखो, वहाँ! एक पेड़ पर बंदर के साथ आदमी बैठा हुआ है और हमारी तरह चढ़ते-उतरते पानी का मजा ले रहा है। ' (जबकि बंदर व आदमी पानी में फंसने के कारण अपनी जान बचाने के लिए पेड़ का सहारा लिए हुए थे।)
तीसरे जानदार सीन देखकर मंत्रीजी फिर आप-से बाहर हो गए, ' उधर देखो उधर, वहाँ पालतू व व जानवर जानवर बहते पानी का मजा ले रहे हैं। यह कहता है कि रामतार हैं। शेर-हिरण, चूहा-बिल्ली, सांप-नेवला, किसान-दलाल के साथ-साथ पैदल कर रहे हैं। इससे अच्छा रामचर क्या विपक्षी ला सकते हैं, जो हमारी हर नीति की आलोचना करते हैं फिर? '
मंत्रीजी थोड़ी देर इधर-उधर निहारने के उपरांत फिर रोमांचित होते हुए बोले, ' देखो उधर, ससुर के घर-आंगन में जलमाता पहुंची है। । उसका चरण दीपक कर रहा है। फ्लड, ससुरा के घर को शुद्ध कर रही है। लेकिन, ये नमकहराम, बाढ़ के नकारात्मक पक्ष को देखते हैं। विपक्षी हमें बदनाम कर रहे हैं कि बाढ़ के वक्त सरकार कान में तेल डालकर सो रही है। आलसी कलाकारों को बाढ़ का जायजा लेने तक की फुर्सत नहीं है। '
मंत्रीजी को आप-से बाहर होता हुआ देखभाईये ने कमान संभाली, ' बाढ़-पीड़ितों के लिए क्या नहीं कर रही है सरकार? कम्बल, चद्दर, खाने-पीने के पैकेट, बिस्किट, दरी सब तो बांट रही है। फिर भी लोग संतुष्ट नहीं होते। पुनः मांगने लगते हैं। ऐसे समय कम ई-पिया करेंगे, तो समस्या अपने-आप हल हो जाएगी? लेकिन नहीं। इन्हं जीभर जीमने और तनकर सोने को चाहिए-ही-चाहिए! ’’
जब अव्ययना खत्म हुआ, तब शाम शाम उन पटे-पटाए पत्रकारों को बुलाकर पत्रवार्ता आहूत किया गया, जिनके पत्रों को दैनिक विज्ञापन देकर मंुह बंद कर दिया जाता था।
उन्होंने खबरनवीशों को समझदारी देते हुए कहा, ' सांलाब के सकारात्मक पक्ष को ही प्रमुखता दी जाए। विशेष रूप से किसानों को लाभ देने के लिए दिखाया गया है। उनकी फसल बरबादी को ऐसे एंगल से दिखाया गया कि वह बरबादी नहीं हैं।
फिर से स्नैक्स हुआ। बरसात को रंगीन करने के लिए शैंपेन की बोतलें खोली गईं। थके-मददे तन के अकड़न को दूर किया गया।
रात को सौ-सौ मरियल किसानों को बुलाकर कंबल, दरी, खाने-पीने के पैकेट बांटते हुए मंत्रीजी दुःखी मन फोटों खिंचाए। बाढ़ पर प्रकृति को कोसते रहे और प्रशासन पर जमकर बरसे। विपक्षियों को आड़े हाथों लिए। व्यवस्था को दुरूस्त करने का आश्वासन दिया। दोषियों को नहीं बख्सने पर जोर दिया।
समझने योग्य देकर वे उड़नखटोला में उड़ गए। किसान उन पैकेटों पर उसी तरह टूट पड़ते हैं, जैसे कांजीहाउस में बंद भूखी गायें दिनों बाद चारा देखकर टूट पड़ती हैं।
अगले दिन काबिल मंत्री उन्हीं समाचारपत्रों की सुर्खियों में छाए रहे, जिनमें वे टुकड़े फेंका करते थे। इसे देखकर हाईकमान उनकी तारीफों के पुल बांधता रहा।
इससे उनका 'बाढ़ का प्रगतियना' मिशन खूब पापुलर हो रहा था। वे पार्टी की नजरों में एक बार फिर काबीनामंत्री साबित हो रहे थे।
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